कोविदः - अन्वयक्रमः #13
अथान्धकारं गिरिगह्वराणां दंष्ट्रामयूखैः शकलानि कुर्वन् ।
भूयः स भूतेश्वरपार्श्ववर्ती किंचिद्विहस्यार्थपतिं बभाषे ॥
पदविभागः | विवर्णम् | प्रतिपदार्थम् |
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अथ | अथ / अव्ययम् | then |
अन्धकारम् |
अन्धकार / नपुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- अन्ध [अन्ध दृष्ट्युपघाते ; चुरादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to be blind, to lose vision) पदविवरणम् :- अन्ध + अच् = अन्ध / त्रि (-धः-धा-धं) (= blind) कृ + घञ् = कार / पुं (= doer) समासविवरणम् :- [उपपदसमासः] अन्धः करोति इति अन्धकारः (= one who makes blind, i.e., darkness) |
darkness |
गिरिगह्वराणाम् |
गिरिगह्वर / पुं / ष.वि / ए.व पदविवरणम् :- गिरि / पुं (= mountain) गह्वर / पुं (= cave, cavern) समासविवरणम् :- [षष्ठीतत्पुरुषसमासः] गिरेः गह्वरं, तेषाम् = गिरिगह्वराणाम् (= of the caverns of the mountain) |
of the caverns of the mountain |
दंष्ट्रामयूखैः |
दंष्ट्रामयूख / पुं / तृ.वि / ए.व धातुविवरणम् :- दंश् [दन्शँ दशने ; भ्वादिः ; परस्मैपदी ; सकर्मकः ; अनिट्] (to bite, to sting) मा [मा माने ; अदादिः ; परस्मैपदी ; सकर्मकः ; अनिट्] (to measure, to weigh, to limit, to compare in size) पदविवरणम् :- दंश् + ष्ट्रन् + टाप् = दंष्ट्रा / स्त्री (= a large tooth, a tusk) मा + ऊख [उणादि] = मयूख / पुं (= light, lustre, brightness, a ray of light) समासविवरणम् :- [षष्ठीतत्पुरुषसमासः] दंष्ट्राणां मयूखः, तैः = दंष्ट्रामयूखैः (= light of the large teeth) |
light of the large teeth |
शकलानि |
शकल / नपुं / द्वि.वि / ब.व धातुविवरणम् :- शक् [शकँ मर्षणे ; दिवादिः ; उभयपदी ; अकर्मकः ; सेट्] (to be able, to be possible) पदविवरणम् :- शक् + कलक् = शकल / पुं & नपुं (-लः-लं) (= pieces) |
many pieces |
कुर्वन् |
कुर्वत् / पुं / प्र.वि / ए.व धातुविवरणम् :- कृ [डुकृञ् करणे ; तनादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; अनिट्] (to do, to act, to make) पदविवरणम् :- कृ + शतृँ = कुर्वत् / त्रि (-न्-न्ती-त्) (= doing) |
doing, making |
भूयः | भूयस् / अव्ययम् | again |
सः | तद् / पुं / प्र.वि / ए.व | he |
भूतेश्वरपार्श्ववर्ती |
भूतेश्वरपार्श्ववर्तिन् / पुं / प्र.वि / ए.व धातुविवरणम् :- भू [भू सत्तायाम् ; भ्वादिः ; परस्मैपदी ; अकर्मकः ; सेट्] (to exist, to become, to be, to happen) वृत् [वृतुँ वर्तने ; भ्वादिः ; आत्मनेपदी ; अकर्मकः ; सेट्] (to be, to happen, to be present) पदविवरणम् :- भू + क्त = भूत / पुं & नपुं (-तः-तं) (= a living being) ईश्वर / त्रि (-रः-रा-री-रं) (= lord, master, chief, head) पार्श्व / त्रि (-र्श्वः-र्श्वा-र्श्वं) (= near, proximate, by the side of) वृत् + णिनि = वर्तिन् / त्रि (-र्त्ती-र्त्तिनी-र्त्ति) (= being, staying, remaining) समासविवरणम् :- [षष्ठीतत्पुरुषसमासः] भूतानाम् ईश्वरः = भूतेश्वरः (= lord of the living beings, Lord Śiva) [सप्तमीतत्पुरुषसमासः] पार्श्वे वर्ती = पार्श्ववर्ती (= being by the side of, an attendant) [षष्ठीतत्पुरुषसमासः] भूतेश्वरस्य पार्श्ववर्ती = भूतेश्वरपार्श्ववर्ती (= an attendant of Lord Śiva) |
an attendant of Lord Śiva |
किंचित् | किम् + चित् = किंचित् / अव्ययम् | a little |
विहस्य |
विहस्य / अव्ययम् धातुविवरणम् :- हस् [हसेँ हसने ; भ्वादिः ; परस्मैपदी ; अकर्मकः ; सेट्] (to laugh, to smile, to joke, to ridicule) पदविवरणम् :- वि + हस् + ल्यप् = विहस्य / अव्ययम् (= having smiled) |
having smiled |
अर्थपतिम् |
अर्थपति / पुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- अर्थ [अर्थ उपयाच्ञायाम् ; चुरादिः ; आत्मनेपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to beg, to request) पदविवरणम् :- अर्थ + घञ् = अर्थ / पुं (= wealth, property) पति / पुं (= a master) समासविवरणम् :- [षष्ठीतत्पुरुषसमासः] अर्थानां पतिः, तम् = अर्थपतिम् (= to him, who is the master of wealth) |
to him, who is the master of wealth |
बभाषे |
भाष् + कर्तरि लिँट् / प्र.पु / ए.व धातुविवरणम् :- भाष् [भाषँ व्यक्तायां वाचि ; भ्वादिः ; आत्मनेपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to articulate, to explain, to elocute) |
spoke |
विवरणानि | क्रियापदानि | |||||
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प्रधानक्रिया 1.0 (बभाषे) | गौणक्रिया 1.1 (कुर्वन्) | गौणक्रिया 1.2 (विहस्य) | ||||
विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | |
प्र.वि | सः (सिंहः) | भूतेश्वरपार्श्ववर्ती | सः (सिंहः) | |||
स.प्र.वि | ||||||
द्वि.वि | अर्थपतिम् | अन्धकारम् शकलानि |
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तृ.वि | दंष्ट्रामयूखैः | |||||
च.वि | ||||||
प.वि | ||||||
ष.वि | गिरिगह्वराणाम् | |||||
स.वि | ||||||
अव्ययम् | अथ भूयः |
किंचित् | ||||
अन्वयः | अथ भूतेश्वरपार्श्ववर्ती सः गिरिगह्वराणाम् अन्धकारं दंष्ट्रामयूखैः शकलानि कुर्वन् किंचित् विहस्य अर्थपतिं भूयः बभाषे । | |||||
तात्पर्यम् | TBD | |||||
Purport | Then he (the lion), the attendant of Lord Śiva, breaking into pieces the darkness of the caves of the mountain with the light of (his) large teeth, having smiled a little, spoke again to king Dilīpa, the master of wealth. | |||||
अन्वयरचना |
बभाषे
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