शिक्षा - सुभाषितम् #03
दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥
पदविभागः | विवरणम् | प्रतिपदार्थम् |
---|---|---|
दानं |
दानम् / नपुं / प्र.वि / ए.व पदविवरणम् :- दा + ल्युट् = दानम् / नपुं |
charity |
भोगः |
भोग / पुं / प्र.वि / ए.व पदविवरणम् :- भुज् + भावे घञ् = भोग / पुं |
enjoyment |
नाशः |
नाश / पुं / प्र.वि / ए.व पदविवरणम् :- नश् + भावे घञ् = नाश / पुं |
destruction |
तिस्रः | त्रि / स्त्री / प्र.वि / ए.व | three |
गतयः |
गति / स्त्री / प्र.वि / ब.व पदविवरणम् :- गम् + भावे क्तिन् = गति / स्त्री |
fates |
भवन्ति | भू + लट् / प्र.पु / ब.व | are |
वित्तस्य | वित्त / नपुं / ष.वि / ए.व | money's |
यः | यद् / पुं / प्र.वि / ए.व | one who |
न ददाति | न दा + लट् / प्र.पु / ए.व | does not donate |
न भुङ्क्ते | न भुज् + लट् / प्र.पु / ए.व | does not enjoy |
तस्य | तद् / पुं / ष.वि / ए.व | that money's |
तृतीया | तृतीया / स्त्री / प्र.वि / ए.व | the third one |
गतिः |
गति / स्त्री / प्र.वि / ए.व पदविवरणम् :- गम् + भावे क्तिन् = गति / स्त्री |
fate |
भवति | भू + लट् / प्र.पु / ए.व | is |
अन्वयः (Prose order) | तात्पर्यम् (Purport) |
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दानं, भोगः, नाशः - (एतेषां) वित्तस्य तिस्रः गतयः भवन्ति । | Money has three fates - it is either given away in charity, or used for enjoying and indulging in pleasures or it is destroyed. |
यः (वित्तं) न ददाति (वा) न भुङ्क्ते, तस्य (पुरुषस्य वित्तस्य) गतिः तृतीया भवति । | So, one who does not donate his wealth charitably or does not use it for gratifying oneself, that person's money attains the 3rd fate (is destined to be destroyed). |
Good work Mahodaya!
ReplyDeleteThank you very much Mahodaya !
DeleteSir very good work. A small doubt Thasya here means I think it refers to the man who does not donate or enjoy - to him the destruction happens and not to the money. If you read tamil book it says destruction to the man. Please clarify
ReplyDeleteThank you very much महोदय !
DeleteThe सुभाषितम् talks about the 3 fates of money. If the money is not put to the first 2 uses (दानं च भोगः च), then that person's money attains the 3rd fate (नाशः). Therefore, in my humble opinion, तस्य refers to तस्य पुरुषस्य वित्तस्य, and not तस्य पुरुषस्य ।
You may also refer to the link below for additional explanation please.
https://archive.org/details/BhartrihariNitiAndVairagyaShataka/page/n109/mode/2up
Thank you sir for clarifying. I have no words to appreciate you for the good work you are doing. Hope you will do for Kovidha also.
ReplyDeleteधन्यवादाः महोदय 🙏
Deleteकर्ताहमिति न मन्ये, कारणमेव 👍
RaviShankar Mahodaya , what a great work you have put through . I found your site a while back and I am going through you site . Thanks for all the hard work put through
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