शिक्षा - सुभाषितम् #02
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ॥
पदविभागः | विवरणम् | प्रतिपदार्थम् |
---|---|---|
यथा | अव्ययम् | just as |
हि | पादपूर्णारणार्थकम् | certainly |
एकेन | एक / पुं / तृ.वि / ए.व | with one |
चक्रेण | चक्र / पुं / तृ.वि / ए.व | with wheel |
रथस्य | रथ / पुं / ष.वि / ए.व | chariot's |
गतिः | गम् + भावे क्तिन् = गति / स्त्री / प्र.वि / ए.व | movement |
न भवेत् | न भू + विधिलिङ् = न भवेत् / प्र.पु / ए.व | does not exist |
एवं | अव्ययम् | in the same manner |
पुरुषकारेण | by man's effort | |
विना | अव्ययम् | without |
दैवं |
दैव / नपुं / प्र.वि / ए.व पदविवरणम् :- देव + अण् = दैव / नपुं |
providence |
न सिद्ध्यति | न सिध् + लट् = सिध्यति **सिद्ध्यति**? / प्र.पु / ए.व | does not bring success |
अन्वयः (Prose order) | तात्पर्यम् (Purport) |
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यथा एकेन चक्रेण रथस्य गतिः न हि भवेत्, एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति । | Just as a chariot cannot move with one wheel, in the same manner without man's effort providence does not bring success. |
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