भगवद्गीता ॥०१.२९॥
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥
| पदविभागः | विवर्णम् | प्रतिपदार्थम् |
|---|---|---|
| वेपथुः | वेप् + अथुच् / पुं / प्र.वि / ए.व | trembling |
| च | अव्ययम् | and |
| शरीरे | शरीर / पुं / स.वि / ए.व | in body |
| मे | अस्मद् / त्रि / ष.वि / ए.व | my |
| रोमहर्षः | रोमहर्ष / पुं / प्र.वि / ए.व | hair-raising |
| च | अव्ययम् | and |
| जायते | जन् + कर्तरि लँट् / प्र.पु / ए.व | happens |
| गाण्डीवम् | गाण्डीव / पुं / द्वि.वि / ए.व | Gandhiva (Arjuna's bow) |
| स्रंसते | स्रंस् + कर्तरि लँट् / प्र.पु / ए.व | falls off |
| हस्तात् | हस्त / पुं / पं.वि / ए.व | from the hand |
| त्वक् | त्वक् / स्त्री / प्र.वि / ए.व | skin |
| च | अव्ययम् | and |
| एव | अव्ययम् | even, too |
| परिदह्यते | परि + दह् + कर्मणि लँट् / प्र.पु / ए.व | burns |
| विवरणानि | क्रियापदानि | |||||
|---|---|---|---|---|---|---|
| प्रधानक्रिया #1 (जायते) | प्रधानक्रिया #2 (स्रंसते) | प्रधानक्रिया #3 (परिदह्यते) | ||||
| विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | |
| प्र.वि | वेपथुः रोमहर्षः |
गाण्डीवम् | त्वक् | |||
| स.प्र.वि | ||||||
| द्वि.वि | ||||||
| तृ.वि | ||||||
| च.वि | ||||||
| प.वि | हस्तात् | |||||
| ष.वि | मे | |||||
| स.वि | शरीरे | |||||
| अव्ययम् | च एव |
|||||
| अन्वयः | मे शरीरे वेपथुः च रोमहर्षः च जायते । हस्तात् गाण्डीवम् स्रंसते च । त्वक् एव परिदह्यते । | |||||
| तात्पर्यम् | My body is trembling, my hair is standing on end, my bow Gāṇḍīva is slipping from my hand, and my skin too is burning. | |||||
| अन्वयरचना |
जायते
|
|||||
Comments
Post a Comment