भगवद्गीता ॥०१.२७॥
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥
| पदविभागः | विवर्णम् | प्रतिपदार्थम् |
|---|---|---|
| तान् | तद् / पुं / द्वि.वि / ब.व | them |
| समीक्ष्य | सम् + ईक्ष् + ल्यप् / अव्ययम् | having seen |
| सः | तद् / पुं / प्र.वि / ए.व | he |
| कौन्तेयः | कुन्ती + ढक् / पुं / प्र.वि / ए.व | the son of Kunti (Arjuna) |
| सर्वान् | सर्व / पुं / द्वि.वि / ब.व | all |
| बन्धून् | बन्धु / पुं / द्वि.वि / ब.व | relatives |
| अवस्थितान् | अव + स्था + क्त / पुं / द्वि.वि / ब.व | situated |
| कृपया | कृपा / स्त्री / तृ.वि / ए.व | by compassion |
| परया | परा / स्त्री / तृ.वि / ए.व | of high grade |
| आविष्टः | आङ् + विश् + क्त / पुं / प्र.वि / ए.व | overwhelmed, burdened with, possessed with |
| विषीदन् | वि + षद् + शतृँ / पुं / प्र.वि / ए.व | sorrowing, despairing |
| इदम् | इदम् / नपुं / द्वि.वि / ए.व | thus |
| अब्रवीत् | ब्रू + लङ् / प्र.पु / ए.व | spoke |
| विवरणानि | क्रियापदानि | |||||
|---|---|---|---|---|---|---|
| प्रधानक्रिया (अब्रवीत्) | गौणक्रिया #1 (समीक्ष्य) | गौणक्रिया #2 (आविष्टः) | ||||
| विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | विशेष्यम् | विशेषणम् | |
| प्र.वि | कौन्तेयः | सः विषीदन् |
||||
| स.प्र.वि | ||||||
| द्वि.वि | इदम् | तान् | अवस्थितान् सर्वान् बन्धून् |
|||
| तृ.वि | कृपया | परया | ||||
| च.वि | ||||||
| प.वि | ||||||
| ष.वि | ||||||
| स.वि | ||||||
| अव्ययम् | ||||||
| अन्वयः | (सः) अवस्थितान् सर्वान् बन्धून् तान् समीक्ष्य परया कृपया आविष्टः कौन्तेयः सः विषीदन् इदम् अब्रवीत् । | |||||
| तात्पर्यम् | Having seen all his relatives, son of Kunti (Arjuna), overwhelmed with supreme compassion, sorrowing / despairing, spoke thus. | |||||
| अन्वयरचना |
अब्रवीत्
|
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