परिचयः - सूक्तिः #04
मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दुःखं न च सुखम् ।
पदविभागः | पदविवर्णम् | प्रतिपदार्थम् |
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मनस्वी |
मनस्विन् / पुं / प्र.वि / ए.व धातुविवरणम् :- मन् [मनुँ अवबोधने ; तनादिः ; आत्मनेपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to understand, to regard, to think, to believe, to assume) पदविवरणम् :- मन् + करणे असुन् = मनस् / नपुं (-नः) (= mind) मनस् + अस्ति-अर्थे विनि = मनस्विन् / त्रि (-स्वी-स्विनी-स्वि) (= fixing the mind upon, steady-minded, resolute, determined) |
a person of steady mind, a determined person |
कार्यार्थी |
कार्यार्थिन् / पुं / प्र.वि / ए.व धातुविवरणम् :- कृ [डुकृञ् करणे ; तनादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; अनिट्] (to do, to act, to make) अर्थ [अर्थ उपयाच्ञायाम् ; चुरादिः ; आत्मनेपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to beg, to request) पदविवरणम् :- कृ + ण्यत् = कार्य / त्रि (-यः-या-यं) (= what should be done) अर्थ + घञ् = अर्थ / पुं (-र्थः) (= aim, purpose, meaning, sense, object) कार्यार्थ + इनि = कार्यार्थिन् / त्रि (-र्थी-र्थिनी-र्थि) (= he, who has in him what ought to be accomplished as the only purpose) समासविवरणम् :- [अवधारणा-पूर्वपद-कर्मधारय-समासः] कार्यः एव अर्थः इति कार्यार्थः । (= what ought to be accomplished is the only purpose) |
he, who has in him what ought to be accomplished as the only purpose |
गणयति |
गण + कर्तरि लँट् / प्र.पु / ए.व धातुविवरणम् :- गण [गण सङ्ख्याने ; चुरादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to count, to enumerate) |
consider, count |
न दुःखम् |
न / अव्ययम् दुःख / नपुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- दुःख [दुःख तत्क्रियायाम् ; चुरादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to make sad, to be sad) पदविवरणम् :- दुःख + अच् = दुःख / त्रि (-खः-खा-खं) (= pain, sorrow, affliction, distress, unhappiness) |
neither pain |
च | अव्ययम् | and |
न सुखम् |
न / अव्ययम् सुख / नपुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- सुख [सुख तत्क्रियायाम् ; चुरादिः ; उभयपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to make happy, to be happy) पदविवरणम् :- सुख + अच् = सुख / त्रि (-खः-खा-खं) (= happy, joy, delight, pleasure) |
neither pleasure |
विषयः | विवरणम् |
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अन्वयः | मनस्वी कार्यार्थी न दुःखम् न सुखम् च गणयति । |
Purport | A person of steady mind, who has in him what ought to be accomplished as the only purpose, considers neither pleasure nor pain. |
उत्तमकार्यम् अस्ति
ReplyDeleteधन्यवादः महोदय ।
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