शिक्षा - अन्वयरचना #02
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।
परासरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥
पदविभागः | विवरणम् | प्रतिपदार्थम् |
---|---|---|
व्यासम् |
व्यास / पुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- अस् [असँ भुवि ; अदादिः ; परस्मैपदी ; अकर्मकः ; सेट्] (to be, to exist) पदविवरणम् :- वि + अस् + घञ् = व्यास / पुं (= separation, division, extension) |
him, the sage Vyāsa |
वसिष्ठनप्तारम् |
वसिष्ठनप्तार / पुं / द्वि.वि / ए.व पदविवरणम् :- वसिष्ठ / पुं (= sage Vasiṣṭha) नप्तृ / पुं (= great-grandson) समासविवरणम् :- [षष्ठी-तत्पुरुष-समासः] वसिष्ठस्य नप्ता, तम् = वसिष्ठनप्तारम् (= great-grandson of sage Vasiṣṭha) |
him, who is the great-grandson of sage Vasiṣṭha |
शक्तेः पौत्रम् |
शक्ति / स्त्री / ष.वि / ए.व पौत्र / पुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- शक् [शकॢँ शक्तौ ; स्वादिः ; परस्मैपदी ; अकर्मकः ; अनिट्] (to be able, to be powerful) पदविवरणम् :- शक् + क्तिन् = शक्ति / स्त्री (= power, strength, prowess) |
him, who is the grandson of Śakti |
अकल्मषम् |
अकल्मष / पुं / द्वि.वि / ए.व समासविवरणम् :- [नञ्-तत्पुरुष-समासः] न कल्मषः, तम् = अकल्मषम् (= faultless) |
him, who is faultless |
परासरात्मजम् |
परासरात्मज / पुं / द्वि.वि / ए.व पदविवरणम् :- परासर / पुं (= sage Parāsara) आत्मन् / पुं (= self or soul) जि + डः = ज / पुं (= conqueror ) जन् + डः = ज / पुं (= born of ) समासविवरणम् :- [षष्ठी-तत्पुरुष-समासः] आत्मनः जः = आत्मजः (= born out of self) [षष्ठी-तत्पुरुष-समासः] परासरस्य आत्मजः, तम् = परासरात्मजम् (= he, who is born of sage Parāsara) |
him, who is the son of sage Parāsara |
वन्दे |
वन्द् + कर्तरि लँट् / उ.पु / ए.व धातुविवरणम् :- वन्द् [वदिँ अभिवादनस्तुत्योः ; भ्वादिः ; आत्मनेपदी ; सकर्मकः ; सेट्] (to worship, to show honor, to do homage, to show respect, to venerate, to bow, to salute, to praise, to adore, to greet) |
I salute |
शुकतातम् |
शुकतात / पुं / द्वि.वि / ए.व पदविवरणम् :- शुक / पुं (= sage Śukā) तात / पुं (= father) समासविवरणम् :- [षष्ठी-तत्पुरुष-समासः] शुकस्य तातः, तम् = शुकतातम् (= he, who is the father of sage Śukā) |
him, who is father of sage Śukā |
तपोनिधिम् |
तपोनिधि / पुं / द्वि.वि / ए.व धातुविवरणम् :- तप् [तपँ सन्तापे ; भ्वादिः ; परस्मैपदी ; सकर्मकः ; अनिट्] (to be angry, to burn, to become hot, to envy, to glow, to shine, to perform penance, to heat, to suffer pain, to hurt) पदविवरणम् :- तप् + असुन् = तपस् / नपुं (= penance) निधि / पुं (= treasury, reservoir) समासविवरणम् :- [बहुव्रीहि-समासः] तपः निधिः यस्य, सः तपोनिधिः (= he, who is a reservoir of penance) |
he, who is a reservoir of penance |
विवरणानि | क्रियापदानि | |
---|---|---|
प्रधानक्रिया (वन्दे) | ||
विशेष्यम् | विशेषणम् | |
प्र.वि | (अहम्) | |
स.प्र.वि | ||
द्वि.वि | व्यासम् | वसिष्ठनप्तारम् पौत्रम् परासरात्मजम् शुकतातम् अकल्मषम् तपोनिधिम् |
तृ.वि | ||
च.वि | ||
प.वि | ||
ष.वि | शक्तेः | |
स.वि | ||
अव्ययम् | ||
अन्वयः | अहं वसिष्ठनप्तारं, शक्तेः पौत्रं, परासरात्मजं, शुकतातम्, अकल्मषं, तपोनिधिं व्यासं वन्दे । | |
तात्पर्यम् | I salute him, the sage Vyāsa, who is the great-grandson of sage Vasiṣṭha, who is the grandson of Śakti, who is the son of sage Parāsara, who is father of sage Śukā, who is faultless and who is a reservoir of penance. | |
अन्वयरचना |
वन्दे
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