भगवद्गीता ॥०१.३५॥ WIP
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ॥
| पदविभागः | विवरणम् | प्रतिपदार्थम् |
|---|---|---|
| Work in progress | ||
| विवरणानि | क्रियापदानि | |
|---|---|---|
| Work in progress | ||
Comments
Post a Comment